आईवीएफ या टेस्ट ट्यूब बेबी- जानें इसका महत्व और अपार संभावनाएं
आईवीएफ या टेस्ट ट्यूब बेबी- जानें इसका महत्व और…
निश्चित ही आईवीएफ का ट्रीटमेंट संतान के इच्छुक दंपत्तियों के लिए शारीरिक और भावनात्मक रूप से काफी चुनौतीपूर्ण है। परंतु जब आप पहली बार अपने अलौकिक शिशु को गोद में लेते हैं तो उस आनंद के सामने सब कुछ बहुत छोटा लगने लगता है।
टेस्ट ट्यूब बेबी टेक्नोलॉजी एक अत्यधिक अग्रिम और उन्नत मेडिकल तकनीक है जो गर्भधारण में तब सहायता करती है जब बाकी सब विकल्प विफल हो जाते हैं। यह बांझपन के अधिकांश कारकों को प्रभावशाली रूप से मात देकर संतान सुख का रास्ता दिखाता है।
आईवीएफ की प्रक्रिया
IVF एक सहायक प्रजनन तकनीक है जिसमें महिला के शरीर से अंडे और पुरुष के शरीर से शुक्राणुओं को प्राप्त कर प्रयोगशाला में मिलाया जाता है। अंडों और शुक्राणुओं को एक ऐसे माध्यम में रखा जाता है जो मानव गर्भाशय से मेल खाता है।
अनुकूल वातावरण पाकर शुक्राणु अंडे में प्रवेश करता है और निषेचन द्वारा एक भ्रूण बनता है। भ्रूण एक सूक्ष्म कोशिका होती है जिसमें गर्भाशय में जाकर शिशु बनने की क्षमता होती है। इसके बाद आईवीएफ विशेषज्ञ भ्रूण स्थानांतरण करते हैं, यानी कि निषेचित कोशिका को मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। सफल प्रत्यारोपण इस प्रक्रिया के चक्र को पूर्ण करता है।
गर्भावस्था परीक्षण(प्रेगनेंसी) टेस्ट के पॉजिटिव आने पर IVF प्रक्रिया के सफल होने की पुष्टि होती है। लुधियाना के एवा हॉस्पिटल एंड इनफर्टिलिटी सेंटर ने आई.वी.एफ द्वारा असंख्य दंपतियों को सफलतापूर्वक गर्भाधान करवाया है। यहां बांझपन का उत्तम और सर्वश्रेष्ठ उपचार उपलब्ध कराया जाता है- वो भी आपके आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार।
प्रजनन विकारों के उपचार में आईवीएफ का महत्व
मूल रूप में संतानोत्पत्ति की अक्षमता को अनुर्वरता, बंध्यता या बांझपन कहा जाता है। दो तिहाई मामलों में स्त्री और एक तिहाई मामलों में इसके लिए पुरुष जिम्मेदार होते हैं। प्रजनन क्षमता के विकारों का उपचार सदियों से चला आ रहा है।
परंतु जब पहले टेस्ट ट्यूब बेबी (आईवीएफ के माध्यम से पैदा हुए शिशु) लुईस ब्राउन का जन्म हुआ, प्रजनन के उपचार की मांग में बहुत तेजी आई। दंपतियों में बांझपन के बढ़ते मामलों के चलते वैज्ञानिक नए आविष्कार करने के लिए प्रेरित हुए।
पिछले चार से पांच दशकों में प्रजनन चिकित्सा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर व्यापक शोध, अध्ययन और प्रयोग शामिल हुए हैं।
वर्तमान समाज में अनुर्वरता या बांझपन अपने पैर पसार रहा है। यदि 12 महीने या उससे अधिक समय तक बिना गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किए संभोग करने पर भी गर्भधारण न हो तो यह बांझपन या अनुर्वरता की श्रेणी में आता है।
आजकल के अधिकांश युवा दंपत्ति जीवन के अन्य लक्ष्यों को बच्चा पैदा करने से अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। कई बार गर्भधारण में देरी करने से उम्र के साथ प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि 10 से 15% दम्पत्ति बांझपन की समस्याओं से जूझ रहे हैं।
ऐसा देखा गया है कि महिलाओं में अनुर्वरता का सबसे आम कारण आयु का अधिक होना है, क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ डिंबग्रंथि में अंडों की संख्या में गिरावट आ जाती है।
इसके अलावा महिलाओं में और भी समस्याएं हो सकती हैं जैसे ओव्यूलेशन की अनियमितता, गर्भ नलिकाओं का बंद होना, गर्भाशय के विकार, और अस्पष्टीकृत बांझपन ।
पुरुष कारक अनुर्वरता कुल मामलों के 30 प्रतिशत में योगदान देता है। सबसे व्यापक कारण हैं अपर्याप्त शुक्राणु उत्पादन, स्खलन शिथिलता, आनुवांशिक विकार और जीवन शैली अथवा पर्यावरण के कारक जैसे धूम्रपान, शराब, ड्रग्स तथा रसायनिक पदार्थों या विकिरणों का संपर्क।
बांझपन के अत्यधिक जटिल मामलों के इलाज को संभव बनाने से आईवीएफ ने अपनी बेहतर तकनीक और अनंत विकल्पों के कारण अत्यधिक महत्व और लोकप्रियता हासिल की है।
आईवीएफ – अनेक संभावित उपचार
गर्भाधान की समस्याओं में जब अन्य सभी तरीके विफल हो जाते हैं, तो आईवीएफ एक ऐसा समाधान प्रदान करता है, जिससे अपने स्वयं के आनुवांशिक शिशु को जन्म देने की संभावना बढ़ जाती है। IVF कुछ अनोखे विकल्प भी प्रदान करता है जैसे:
अंडा दान – कई बार माता के अंडों की गुणवत्ता या अनुकूलता सही नहीं होती है। ऐसे में किसी अन्य स्त्री के अंडों (डोनर एग्स) का उपयोग करके भी प्रयोगशाला में भ्रूण को विकसित किया जा सकता है। ऐसा केवल टेस्ट ट्यूब बेबी विकल्प में ही संभव है। IUI या अन्य प्रजनन उपचार विधियाँ आपको यह विकल्प नहीं देती हैं। डोनर अंडे आनुवंशिक रोगों, ओवुलेशन विकारों या अंडों की अनुपलब्धता को दरकिनार करने में सहायक सिद्ध होते हैं।स्थानापन्न
सरोगेसी – जब जैविक माँ बच्चेदानी की गड़बड़ी के कारण शिशु को कोख में पालने में असक्षम होती है, तो सरोगेट या स्थानापन्न माता बच्चे को जन्म देती है। आई.वी.एफ द्वारा दंपत्ति के भ्रूण को सरोगेट माता में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। सरोगेट माता केवल ‘जन्म देने वाली’ मां है, जबकि अपना भ्रूण देने वाले दंपत्ति शिशु के जैविक माता पिता होते हैं। समझौते के अनुसार जन्म के बाद शिशु को दंपत्ति को सौंप दिया जाता है।
जन्म देने का मनचाहा समय- आईवीएफ एक उन्नत कृत्रिम प्रजनन तकनीक है जिसके द्वारा आप अपने शिशु को जन्म देने का उपयुक्त समय भी चुन सकते हैं। यदि किन्ही कारणों से आप अभी गर्भधारण के लिए तैयार नहीं हैं, तो आप भविष्य में वांछनीय समय पर गर्भधारण कर सकते हैं। यानी कि आप बच्चे के जन्म का समय प्लान कर सकते हैं।
आईवीएफ स्पेशलिस्ट आप के अंडे शुक्राणु क्या भ्रूण को जमा कर संरक्षित कर लेते हैं। उचित समय पर इनका उपयोग करके गर्भ धारण करवाया जाता है। ऐसा करने के कई कारण हो सकते हैं। शायद आप एक गंभीर बीमारी से लड़ रहे हैं और अपने स्वस्थ अंडों को संरक्षित करना चाहते हैं। अन्य प्रजनन तकनीकों में यह सुविधा नहीं होती, बल्कि एक प्रतीक्षा अवधि भी शामिल होती है।
विकट एंडोमेट्रियोसिस – जब महिला के गर्भाशय में विकट एंडोमेट्रियोसिस की स्थिति होती है, तो प्राकृतिक या कृत्रिम दोनों ही तरीकों से बच्चा नहीं ठहरता। शुक्राणु अंडों तक पहुंच ही नहीं पाते। ऐसे मामलों में आईवीएफ द्वारा इन-विट्रो या शरीर के बाहर निषेचन की आवश्यकता पड़ती है। इसके बाद भ्रूण स्थानांतरण करके महिला को गर्भधारण करवाया जाता है।
आई.वी.एफ में नए विकास
जिस तरह प्रजनन उपचारों में लगातार शोध हो रहे हैं और डॉक्टरों का अनुभव भी बढ़ रहा है, IVF की सफलता दर भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। पिछले चार दशकों के दौरान इस क्षेत्र में अभूतपूर्व तकनीकी विकास होते रहे हैं, जैसे कि:
- अतिरिक्त भ्रूणों का संरक्षण
- शुक्राणुओं की असामान्यताओं से निजात के लिए इंट्रासाइटोप्लाज्मिक शुक्राणु इंजेक्शन या ICSI
- क्रोमोसोमल स्क्रीनिंग द्वारा अनवांछित शुक्राणुओं को हटा देना
- तीन-माता-पिता वाला IVF
- डिम्बग्रंथि के ऊतकों का संरक्षण
- गर्भाशय या बच्चेदानी का प्रत्यारोपण
….और कई और भी
आप भी अगर अन्य विकल्पों की असफलता से हताश हो गए हैं तो आईएएफ में आपको कई नई नई संभावनाएं मिलेंगी जिससे आप मातृत्व का सुख भोग सकते हैं। आज ही IVF विशेषज्ञ से संपर्क करें।